दर्द निवारक दवाएं: दुष्प्रभाव और सावधानियां

Health benefits of Dates/खजूर in Hindi
गिलोय : आयुर्वेद का अमृत

दर्द निवारक दवाएं: दुष्प्रभाव और सावधानियां

डॉ.स्वास्तिक जैन, आयुर्वेद फिजिशियन 

मित्रों , हम सबने कभी न कभी दर्द निवारक दवाओं का अपने जीवन में प्रयोग किया होगा. यदि कभी आपका सर दर्द करता है तो आप सोचते होंगे की चलो कोम्बिफ्लैम या ब्रुफिन खा ली जाय तो दर्द ठीक हो जाएगा. कुछ समय के लिए इससे आराम भी मिल जाता है. परन्तु अगर ऎसी दवाओं को रोज ही लेने की आदत पड़ जाए तो न केवल यह शरीर के लिए नुक्सानदायक होता है बल्कि इससे होने वाले साइड एफ्फेक्ट्स से मृत्यु तक हो सकती है.
drug-painkillersआजकल बाज़ार में अलग अलग कॉम्बिनेशन की अनेक दर्द निवारक दवाएं या पेनकिलर्स मौजूद हैं. इनका केमिकल कम्पोजीशन रोग के अनुसार अलग अलग होता है. इनमें से कुछ पेनकिलर्स ऐसे भी हैं जिनको अगर बिना उचित सलाह के अपनी मर्ज़ी से खाया जाय तो इनकी लत लग जाती है और भयानक बीमारियाँ भी हो जाती हैं. रोगी को इन दवाओं का गुलाम बनकर हमेशा इन पर निर्भर रहना पड़ता है. साधारण से दर्द को ठीक करने की कोशिश में लोग बिना डॉक्टर की सलाह के अनाप शनाप दवाएं खाने लगे हैं जिससे इन गोलियों के एडिक्शन की खतरनाक बीमारी के चंगुल में फंसते जा रहे हैं. यदि कभी इन दवाओं को लोग बंद भी करना चाहें और अचानक बंद कर दें तो इनके विदड्रोल सिम्पटम के कारण अनेक समस्याएं उठ खड़ी होती हैं जैसे-हाथ पैरों का कांपना, बैचैनी, गुस्सा, डायरिया, छींकें, अनिद्रा, नाक से पानी बहना आदि.

आइये पेन किलर्स से साइड इफेक्ट्स जानेंDrug-Rehab-Medicatioन

Gastritis-
पेन किलर्स के ज़्यादा प्रयोग से सीने मं जलन, पेट दर्द, खट्टी डकारें और उलटी आने की समस्याएं होने लगती हैं. इसके बाद धीरे धीरे पेट में सूजन आ जाती है और उसमें घाव बनने लगते हैं. इसके बाद उसमें से खून भी बहने लगता है.
लिवर में सूजन-
अनेक मरीजों दर्द निवारक दवाओं के अधिक प्रयोग के कारण लिवर की सेल्स टूटने लगती हैं और भूख कम लगने लगती है.
किडनी की समस्याएं- 
दर्द निवारक दवाओं के अधिक प्रयोग के कारण किडनी खराब होने के केसेस बदते ही जा रहे हैं. किडनी की सेल्स डैमेज होने के कारण वो ठीक से काम नहीं कर पाती हैं.
ब्लड डिस्क्रैसिया-
पेन किलर ज़्यादा लेने से खून की रासायनिक संरचना बदलने लगती है और इसे ब्लड डिस्क्रैसिया कहते हैं. इससे रोगियों की मृत्यु तक हो जाती है.
अस्थमा-
कुछ रोगियों को इन दवाओं के विपरीत प्रभावों के कारण अस्थमा भी हो जाता है.
मानसिक बीमारियाँ-
इन समस्याओं में प्रमुख हैं-विचार शून्यता, याददाश्त कमज़ोर हो जाना, भ्रम, शक और वहां होने लगना और अन्य तरह की भावनात्मक समस्याएं उत्पन्न हो जाना.
माइग्रेन-
किसी किसी मरीज़ को दर्द निवारक दवाएं ज्यादा लेने से माइग्रेन की भी समस्या होने लगती है.

हमेशा ध्यान रखें कि-Pain-When

1.दर्द कम करने के लिए ली जाने वाली कोई भी दवा सिर्फ उतने समय तक ही लें जब तक उसे आपके डॉक्टर ने कहा हो. एक बार दर्द खत्म होने के बाद दवा बंद कर दें और शौकिया तौर पर इसे नहीं लें.
2.अगर फिर इसी तरह का दर्द आपको होने लगे तो ये नहीं सोचें कि डॉक्टर ने पिछली बार जो दवा दी थी उसी को ले ली जाए और डॉक्टर की फीस बचा ली जाय. लोगों कि इसी प्रवृत्ति के कारण दवाओं के ज़्यादा साइड इफेक्ट्स हो रहे हैं.
3.अधिकांश पेनकिलर्स को खाने के बाद लेने की सलाह दी जाती है. इसे खाली पेट नहीं लें.
4.शराब इत्यादि से दूर रहें- पेनकिलर्स और शराब दोनों से एसिडिटी बनती है इसलिए दोनों को अगर एकसाथ लिया जाय तो एसिडिटी ज़्यादा होगी. शराब और पेन किलर्स को एक साथ सेवन हार्ट अटैक भी कर सकता है. इसलिए सावधान रहें.
5.शरीर में पानी की कमी नहीं होने दें. दवा सेवन के दौरान यथा संभव पानी पीते रहें. कम पानी पीने से किडनी से विषाक्त पदार्थ नहीं निकलेंगे और किडनी खराब हो सकती है.
6.कभी कभी कुछ गोलियों को निगलने की बजाय चबाकर खाते हैं. ऐसे में दवा की पूरी डोज तेजी से शरीर में घुलता है और कई बार हमारा शरीर उसके प्रभाव को संभाल नहीं पाता. यह दवा के ओवरडोज की तरह असर करता है. इसलिए अगर आपको पूरी एक टैबलेट लेनी है तो उसे तोड़कर लेने के बजाय पूरी ही खाएं.
7.एक बार में एक से अधिक पेन किलर दवा नहीं लें. दर्द कितना भी तेज हो या कैसा भी हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप बिना अपने डॉक्टर की सलाह के ज्यादा पेन किलर लें. किसी भी समस्या होने पर डॉक्टर की सलाह से ही कोई दवा लें.
8.याद रखें ये केमिकल्स हैं जिसे बिना डॉक्टरी सलाह के अधिक मात्रा में लेने से आपके शरीर को जानलेवा नुक्सान भी हो सकता है.
9.अगर रोगी को पेनकिलर का एडिक्शन हो गया है तो उसे मनोचिकित्सक से इलाज करवाएं. इसमें रोगी को नशामुक्त होने की तरह से ही कुछ समय इलाज करवाना पड़ता है और कुछ समय में रोगी ठीक हो जाता है. कुछ रोगियों को नशामुक्ति के इलाज़ के साथ साथ काउंसिलिंग की भी ज़रूरत होती है. आमतौर पर इस पूरी प्रक्रिया में 4-6 माह लग जाते हैं.
जनहित में यह जानकारी शेयर करें.
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥
धन्यवाद !!!!
आपका अपना,
डॉ.स्वास्तिक
चिकित्सा अधिकारी
(आयुष विभाग, उत्तराखंड शासन)
(ये सूचना सिर्फ आपके ज्ञान वर्धन हेतु है. किसी भी गम्भीर रोग से पीड़ित होने पर चिकित्सक के परामर्श के बाद अथवा लेखक के परामर्श के बाद ही कोई दवा लें. पब्लिक हेल्थ के अन्य मुद्दों तथा जनहित के लिए सुझावों के लिए लेखक से drswastikjain@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)
Health benefits of Dates/खजूर in Hindi
गिलोय : आयुर्वेद का अमृत

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *